विश्लेषण: दुनिया में कोई भी महत्वपूर्ण घटना, घटने से पहले ही संकेत देती है। ये अलग है कि कुछ लोग इन संकेतों को समझते हैं, और कुछ लोग इनसे अंजान रहते हैं। जिन लोगों को संकेत मालूम होते हैं, वे इन घटनाओं से पहले ही तैयारियां कर लेते हैं, जबकि जो लोग अंजान रहते हैं, उन्हें इन घटनाओं के घटने पर भारी नुकसान उठाना पड़ता है। इजरायल पिछले कई विश्वयुद्ध वर्षों से जानता है कि अरब देशों को उसकी मौजूदगी परेशान करती है। वह जानता था कि हमास, फिलिस्तीन का आंतकी संगठन, लगातार उसके खिलाफ साजिश करता है।

वह अक्सर इजरायल पर रॉकेट हमले करता है। ज्यादातर ये हमले इजरायल विश्वयुद्ध के रक्षा प्रणाली के आयरन डोम ने नाकाम किए हैं। लेकिन इजरायल को पता नहीं था कि एक समय आएगा जब हमास इतने बड़े हमले करेगा कि Iron Dome भी संभालना नहीं होगा। 7 अक्टूबर को हुआ, हमास ने इजरायल पर हजारों रॉकेट दागे, जिसके परिणामस्वरूप विश्वयुद्ध इजरायल को भारी नुकसान हुआ। यही नहीं, हमास ने अचानक जमीनी हमले भी किए, जिससे इजरायल संभल नहीं पाया।
हमास से इतने बड़े हमले की उम्मीद इजरायल ने नहीं की थी। इजरायल ने अपने दुश्मन को कम समझा। आज भी दुनिया एक ऐसे मोड़ पर है, जिससे खतरनाक संकेत मिल रहे हैं। अठहत्तर वर्ष पहले दूसरा विश्वयुद्ध हुआ। इसमें लगभग हर देश शामिल था। वर्तमान घटनाओं से तीसरे विश्व युद्ध का संकेत मिल रहा है। छोटी-छोटी घटनाओं का एक समंदर बन रहा है, जो पूरे विश्व को युद्ध के सैलाब में धकेल देगा।
पहला संकेत: तीन अलग-अलग देशों में युद्ध जारी है। इजरायल-फिलिस्तीन, रूस-यूक्रेन, अजरबैजान-अर्मेनिया और सीरिया में अभी भी चल रहे गृहयुद्ध

विश्वयुद्ध का इतिहास फिर से होगा?
दूसरा संकेत: महाशक्तियां छोटे-छोटे युद्धों में शामिल होने लगी हैं।
अमेरिका, जर्मनी, रूस, चीन, ईरान और अन्य देश इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध में अपने समर्थक देशों का पक्ष लेने लगे हैं।
दूसरा संकेत: दुनिया भर में आर्थिक मंदी चल रही है। युद्ध अक्सर आर्थिक मंदी का परिणाम होता है।
चौथा संकेत: कुछ देश युद्ध नहीं कर सकते हैं। इन देशों के बीच कई सीमा विवाद हैं, जैसे चीन और ताइवान, भारत और पाकिस्तान, और भारत और चीन।

पांचवां संकेत है कि वैश्विक आतंकवाद एक नए स्तर पर पहुंच गया है। अब स्थानीय आतंकी संगठन वैश्विक रूप से काम कर रहे हैं। वह एक देश में रहकर दुनिया भर में अस्थिरता पैदा करने लगे हैं। यही नहीं, इन आतंकवादी संगठनों के कट्टरवादी समर्थकों की संख्या तेजी से बढ़ी है। Freedom Fighter ने कहा कि हमास इसका बड़ा उदाहरण है।
पिछले दस वर्षों से ये पांच संकेत मिल रहे हैं। इसलिए दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध की ओर बढ़ रही है। तीसरे विश्व युद्ध की आशंका अब सिर्फ विचारों में नहीं है। अब हर देश इन संकेतों को समझने लगा है। में हमने आपको बताया था कि पिछले कुछ वर्षों में हमारी दुनिया एक बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था की ओर बढ़ रही है। और इस नए विश्व व्यवस्था में सत्ता का एक केंद्र नहीं, बल्कि बहुत से देश क्षेत्रीय महाशक्ति बन गए हैं। इससे ब्रिटेन, यूरोप और अमेरिका का दबदबा कम हुआ है। दुनिया के ऐसे शक्तिशाली देशों, जो आंतरिक रूप से अस्थिर हैं, ये एक महत्वपूर्ण कारण है
युद्ध का आह्वान कर रहे हैं। पहला उदाहरण दुनिया के तीन अलग-अलग हिस्सों में चल रही युद्ध है। किसी भी महाशक्ति की बातें इन युद्धों में शामिल देशों पर असर नहीं कर रही हैं।
रूस और यूक्रेन के बीच पिछले लगभग एक वर्ष से युद्ध चल रहा है। रूस इसे विशिष्ट सैन्य कार्रवाई बता रहा है। यही कारण है कि यूक्रेन के लिए ये लड़ाई अस्तित्व की लड़ाई है। यूक्रेन को अमेरिका और NATO के अन्य सदस्यों ने पूरा समर्थन दिया है।यूरोपीय देशों ने यूक्रेन को खुलकर मदद की है। आर्थिक सहायता के अलावा वे सैन्य सहायता भी दे रहे हैं।
ये देश यूक्रेन के साथ मिलकर युद्ध नहीं लड़ते हैं। लेकिन वे यूक्रेन को रूस के खिलाफ मदद करके रूस को युद्ध में कमजोर कर रहे हैं। इन देशों ने यूक्रेन का पक्ष लेकर साफ कर दिया कि वे रूस के खिलाफ हैं।
पिछले पांच वर्षों में अजरबैजान और अर्मीनिया के बीच तीन बार युद्ध हुआ है। कोरोना महामारी के दौरान ये दोनों देश पहली बार मिले। इस दौरान इस युद्ध में दो हजार से अधिक लोग मारे गए। ये संघर्ष लगभग छह सप्ताह चला। इन दोनों के बीच दूसरी बार 2022 में युद्ध हुआ। ये युद्ध लगभग एक हफ्ते चला।

विश्वयुद्ध का इतिहास फिर से होगा?
Nagorno-Karabakh क्षेत्र पर नियंत्रण को लेकर इन दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू हुआ। इसमें करीब 250 लोग मारे गए। इस युद्ध में कई देशों ने अपना पक्ष चुना। जिसमें टर्की, इजरायल और पाकिस्तान अजरबैजान के पक्ष में खड़े थे। वहीं रूस अर्मेनिया की तरफ था। रूस ने भी अर्मेनिया में सैन्य अड्डे बनाए हैं। पिछले कुछ हफ्तों से अजरबैजान और अर्मेनिया के बीच एक बार फिर युद्ध की हालत बनी हुई है। जो तीसरे विश्वयुद्ध का कारण बन सकता है।
7 अक्टूबर को फिलिस्तीनी आतंकी संगठन ने इजरायल पर हमला करके इजरायल को एक लंबे युद्ध में डाल दिया। इजरायल पिछले ग्यारह दिनों से गाजा पट्टी पर निरंतर हमले कर रहा है। यही नहीं, वह अब लेबनान सीमा पर हिजबुल्लाह नामक आतंकी संगठन के साथ युद्ध कर रहा है। ये युद्ध मध्य ईस्ट और पश्चिमी देशों में युद्ध का बड़ा कारण बन सकते हैं। ये तीन युद्ध, यानी दुनिया के लिए, विश्वयुद्ध का संकेत दे रहे हैं। जिसमें विश्व का लगभग हर देश किसी एक देश का पक्ष लेता है।
इजरायल ने मध्य ईस्ट देशों को सीधे धमकी दी है। Исरीयल स्पष्ट रूप से किसी भी देश को बख्शने के मूड में नहीं है जो उन पर हमला करेगा। फिर चाहे फिलिस्तीन, जॉर्डन, लेबनान, सीरिया, ईरान या टर्की हो। इजरायल किसी भी तरह से हमले का जवाब देने में देरी नहीं करेगा।
ईरान ने इस पूरे युद्ध में आतंकी संगठन हमास का खुलकर समर्थन किया है।ईरान के प्रधानमंत्री अली खामनेई ने कहा कि मुसलमानों को गाजा पट्टी पर ज़ायोनी शासन यानी इजरायल के अपराधों से कोई बच नहीं सकता। हमास के आतंकी हमले के बाद, खामनेई ने इजरायल के पटलवार को देखते हुए ये चेतावनी दी है। ईरान ने इजरायल को चेतावनी दी है कि वह युद्ध को और अधिक नहीं बढ़ावा देगा। ईरान के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर इजरायल गाजा पट्टी पर हमले करता है तो इससे पूरे क्षेत्र में युद्ध शुरू हो सकता है।
ईरान, फिलिस्तीन और हमास इजरायल का समर्थन करते हैं। ईरान भी लेबनान में आतंकी हिजबुल्लाह का समर्थन करता है। ये दोनों आतंकवादी संगठन इजरायल के खिलाफ लड़ रहे हैं। ईरान कहता है कि इन आतंकवादी संगठनों को इजरायल से लंबी लड़ाई लड़ने की क्षमता है, ईरान ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ये आतंकी संगठन इजरायल का नक्शा बदल सकते हैं। इससे स्पष्ट हो गया है कि ईरान और मिडिल ईस्ट के अधिकांश देश इजरायल के खिलाफ हैं, यानी फिलिस्तीन के साथ।

अमेरिका इस समय इजरायल के साथ खड़ा है। अमेरिका ने भी अपने दो युद्धपोत भूमध्य सागर में उतारे हैं। अमेरिकी फाइटर जेट भी इन पर तैनात है। अमेरिका ने ये युद्धपोत इजरायल की मदद के लिए उतारे हैं, साथ ही उसने ईरान और अन्य देशों से इस युद्ध में भाग नहीं लेने की अपील की है। लेकिन वह इजरायल से भी गाजा पट्टी पर कब्जा नहीं करने की अपील करता है। ईरान की धमकी से अमेरिका अधिक सावधान हो गया है विश्वयुद्ध।
अमेरिका ने 2000 मरीन सैनिकों को जमीनी हमले में इजरायल की मदद करने के लिए मैदान में भेजा है। ये अमेरिकी सैनिक इजरायल को जमीनी स्तर पर लॉजिस्टिक सहायता दे सकते हैं।यही नहीं, अगर ईरान या अन्य देश युद्ध में उतरते हैं तो वे इजरायल के साथ भी खड़े हो सकते हैं।
जो बाइडेन भी युद्ध के दौरान इजरायल जाएगा। इस दौरे का समय ऐसा है जब हमास लगातार इजरायल पर रॉकेट हमले कर रहा है। इन हमलों के बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति की सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के दौरे के दौरान हमास से रॉकेट हमले किए जाएंगे, तो यह एक तरह से अमेरिका पर हमला होगा क्योंकि खतरा अमेरिकी राष्ट्रपति को होगा। यहां आपको पता होना चाहिए कि कल इजरायली संसद में शीत सत्र का पहला दिन था, जिससे कुछ देर बाद हमास ने रॉकेट हमले शुरू कर दिए। सांसद सायरन बजते ही बंकर में चले गए विश्वयुद्ध विश्वयुद्ध|

अब प्रश्न यह है कि अगर ऐसी स्थिति अमेरिकी राष्ट्रपति के दौरे के दौरान हुई तो क्या होगा?
फिलहाल, जर्मनी भी इस युद्ध में इजरायल के साथ है। जर्मनी के चांसलर स्कॉल्ज़ इजराय पहुंच चुके हैं, जहां वह इजरायल के प्रधानमंत्री बेन्जामिन नेतन्याहू से मुलाकात करने वाले हैं। युद्ध इस बैठक का मुख्य मुद्दा है। जर्मनी और फ्रांस दोनों इस युद्ध में हमास के खिलाफ इजरायल के साथ हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों भी इस युद्ध में इजरायल को प्रतिक्रिया देने का पक्षधर है विश्वयुद्ध।
इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध एक तीसरे विश्वयुद्ध का कारण बन सकता है। हम ऐसा कह रहे हैं क्योंकि ऐसा ही हुआ था जब दूसरा विश्वयुद्ध हुआ था। वर्तमान परिस्थितियां द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले की हैं। 20वीं सदी की शुरुआत में दुनिया एक नए विश्व व्यवस्था की ओर बढ़ रही थी। पुरानी विश्व व्यवस्था को बदलने के लिए ये दो विश्व युद्ध लड़े गए विश्वयुद्ध।
20वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटेन और फ्रांस ने पश्चिमी यूरोप में पूरी दुनिया में उपनिवेश कर लिया। रूस देर से उपनिवेशों की इस दौड़ में शामिल हुआ, लेकिन उसने भी मध्य एशिया और दक्षिणी यूरोप में अपना साम्राज्य बढ़ाया। जर्मनी, मध्य यूरोप का सबसे शक्तिशाली देश, भी पूरी तरह से औद्योगिक हो गया था। जर्मनी भी अफ्रीका और एशिया में कच्चे माल के स्रोत और बाजार की तलाश में था। लेकिन जर्मनी ने देखा कि ब्रिटेन और फ्रांस ने पहले ही पूरी दुनिया को बाँट दिया था। जर्मनी एक विश्वव्यापी बंटवारा चाहता था। वहीं फ्रांस और ब्रिटेन अपने उपनिवेशों को सुरक्षित रखना चाहते थे।विश्वयुद्ध
उस समय, तीन महाद्वीपों (एशिया, अफ्रीका और यूरोप) में फैली हुई ‘ओस्मानिया सल्तनत’ भी अस्थिर हो गई थी। इस सल्तनत का एक बड़ा हिस्सा स्वतंत्र देश की मांग करने लगा। पूर्वी यूरोप के बल्कान क्षेत्र में राष्ट्रवाद तेजी से फैल गया। वह ‘ऑस्ट्रिया-हंगेरी साम्राज्य’ से छुटकारा चाहता था। ऐसे समय में 28 जून 1914 को ऑस्ट्रिया के आर्क ड्यूक फ्रांसिस फर्डिनान को सर्बियाई राष्ट्रवादियों ने मार डाला। अगले दिन ‘ऑस्ट्रिया-हंगेरी साम्राज्य’ ने सर्बिया से युद्ध किया। रूस ने इसके जवाब में सर्बिया का पक्ष लिया। इसके बाद जर्मनी ने ऑस्ट्रिया का समर्थन करने के लिए युद्ध शुरू किया। उसने रूस के सहयोगी फ्रांस और बेल्जियम पर भी हमला किया।

ब्रिटेन ने बेल्जियम पर हमले के साथ युद्ध शुरू किया। युद्ध में ब्रिटेन और फ्रांस ने भी अपने उपनिवेशों को शामिल किया। धीरे-धीरे ये युद्ध विश्व भर में फैल गए। अमेरिका, कनाडा, इटली और ओस्मानिया सल्तनत पहले विश्व युद्ध में शामिल हुए। जर्मनी पहले विश्वयुद्ध में हार गई और अपना लक्ष्य नहीं पाया। इसलिए दुनिया को लगभग दो दशक बाद दूसरे विश्वयुद्ध में फिर से बंटवारा करना पड़ा।
इनका मानना है कि वर्तमान विश्व व्यवस्था पश्चिमी देशों के हित में बनाई गई है। ये देश हर हाल में विश्व व्यवस्था को बदलने की ओर बढ़ रहे हैं। रूस पूर्वी यूरोप में अमेरिका की हस्तक्षेप नहीं चाहता। चीन, ताइवान और दक्षिण चीन सागर में अमेरिका का दखल नहीं चाहता, वहीं तुर्की ‘ओस्मानिया सल्तनत’ को फिर से बढ़ाने की इच्छा रखता है। दुनिया पहले और दूसरे विश्वयुद्ध से पहले बड़ी सैन्य ताकतों में विभाजित हुई थी। जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और ओस्मानिया सल्तनत एक साथ थे। Central Power उनका नाम था।
हम भी देखते हैं कि रूस, चीन, ईरान और तुर्की जैसे देश आज की दुनिया से संतुष्ट नहीं हैं। इनका मानना है कि वर्तमान विश्व व्यवस्था पश्चिमी देशों के हित में बनाई गई है। हर हाल में ये देश

वहीं ब्रिटेन, रूस और फ्रांस एक साथ थे। इन्हें सहयोगी शक्तियाँ कहा जाता था। ऑस्ट्रिया और सर्बिया के बीच हुई लड़ाई जल्दी ही विश्व युद्ध में बदल गई। आज भी दुनिया में कई सैन्य ताकतें हैं। एक ओर, NATO लगातार रूस के पड़ोस में विस्तार कर रहा है। फिनलैंड ने हाल ही में NATO का 31वां सदस्य बन गया है, और स्वीडन भी जल्द ही इसमें शामिल हो सकता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद से, स्वीडन और फिनलैंड ने दुनिया भर के अन्य देशों के विवादों में निष्पक्ष रुख अपनाया था। लेकिन आज, ये स्वतंत्र देश भी सेना में शामिल हो गए
यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की भी NATO की सदस्यता की मांग कर रहे हैं, लेकिन पुतिन यूक्रेन को किसी भी कीमत पर सदस्य नहीं बनाना चाहते हैं। इसके अलावा, रूस ने चीन, नॉर्थ कोरिया, ईरान और सीरिया जैसे देशों से सैन्य संबंधों को बढ़ा दिया है। बहुत कम लोग जानते हैं कि 1930 के दशक की महामारी भी दूसरे विश्वयुद्ध का एक महत्वपूर्ण कारण था। इस दौरान विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने करोड़ों लोगों को नौकरी से निकाला था। लोगों का कर्ज बढ़ता जा रहा था, और पैसे कम होते जा रहे थे। यह मंदी ही जर्मनी में हिटलर का जन्म हुआ, और दूसरे देशों में भी क्रांतिकारी राष्ट्रवादी पार्टियां सत्ता में आने लगीं।

वर्तमान परिस्थितियों में, दुनिया भर में 2020 की कोरोना वायरस महामारी के बाद से ही आर्थिक मंदी हुई है। Sri Lanka, Pakistan, Lebanon, Argentina, Venezuela, Ecuador और Egypt जैसे देशों का अर्थव्यवस्था गिर गई है। इनमें से कुछ देशों को कभी भी दिवालिया घोषित किया जा सकता है। तानाशाह नेतृत्व अपनी कमियों को छिपाने के लिए युद्ध का सहारा लेता है। इसलिए आज की परिस्थितियों में विश्वयुद्ध होना काल्पनिक नहीं है।