सावन के तीसरे सोमवार

सावन का पहला सोमवार आज

विशेष ध्यान रखनेवाली बातें

आज सावन माह का पहला सोमवार है. सावन का महीना विशेष महत्व रखता है, खासकर इसके अंतर्गत आने वाले प्रत्येक सोमवार के लिए। सावन के महीने में सोमवार का व्रत रखना और भगवान शिव की विशेष पूजा और अभिषेक (अनुष्ठान स्नान) करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। इस माह कुल 8 सोमवार व्रत रखे जाएंगे।सावन का महीना 31 अगस्त तक चलेगा.

सावन सोमवार, 2023 के लिए शुभ पूजा समय

सावन का पहला सोमवार आज सावन

सावन

आज माह के पहले सोमवार पर आकाशीय ऊर्जा का अत्यंत अनुकूल और शुभ संयोग बन रहा है। इस दिन रेवती नक्षत्र और सुकर्मा योग भगवान शिव की पूजा को बढ़ाते हैं। शुभ अभिजीत मुहूर्त की बात करें तो यह सुबह 11:59 बजे शुरू होता है और दोपहर 12:54 बजे तक रहता है।

सावन के महीने जरूर करें ये उपाय

सावन का महीना भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना का होता है। शास्त्रों में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के उपाय किए जाते हैं। महीने में हर रोज 11 व 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ॐ नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए। इससे सभी तरह की मनोकामनाएं जल्द पूरी होती हैं ।

सावन में शिव उपासना के लाभ

आज सावन का पहला सोमवार है। शिवपुराण के अनुसार सावन के महीने में सोमवार व्रत रखे और पूजा-उपासना करने पर सभी तरह की परेशानियां जल्द ही दूर होने लगती है और परिवार में सुख-शांति और वैभव की प्राप्ति होती है।  सावन में महाकाल की पूजा से व्यक्ति को दुर्घटना और अकाल मृत्यु नहीं होती है। 

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अधिकमास के कारण दो महीना चलेगा सावन

इस बार सावन का महीना 58 दिनों तक चलेगा। सावन के महीने की शुरुआत 4 जुलाई से हो गई जोकि 31 अगस्त तक रहेगा। सावन के महीने में अधिकमास पड़ने के कारण इस बार का महीना दो माह तक चलेगा। सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा उपासना करना बहुत ही फलदायी रहता है।

भगवान शिव को भस्म क्यों लगाई जाती है?

सभी देवताओं में भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होने वाले माने जाते हैं। यदि कोई सच्चे मन से सच्चे मन से उन्हें जल की एक बूंद भी अर्पित करता है तो वे भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं। भगवान शिव की पूजा में भस्म का बहुत महत्व है। शिव

पुराण के अनुसार भस्म लगाए बिना भगवान शिव की पूजा अधूरी मानी जाती है।

भगवान शिव को भस्म लगाने की परंपरा के पीछे एक पौराणिक कहानी है। एक बार, राजा दक्ष ने अपने महल में एक भव्य यज्ञ (पवित्र अग्नि समारोह) का आयोजन किया, जहाँ उन्होंने अपनी बेटी देवी सती के पति, भगवान शिव का अपमान किया। अपमान

सुनकर देवी सती ने यज्ञ अग्नि में आत्मदाह कर लिया। जब भगवान शिव को इस बारे में पता चला, तो वे क्रोधित हो गए और सती की चिता की राख को अपने शरीर पर लपेटकर तांडव (लौकिक नृत्य) किया। तभी से भगवान शिव को भस्म लगाने की परंपरा शुरू हुई।

भगवान शिव को भस्म लगाना जीवन की क्षणिक प्रकृति और मृत्यु की अंतिम वास्तविकता का प्रतीक है। यह भक्तों को एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि इस भौतिक संसार में सब कुछ अस्थायी है, और केवल शाश्वत सार ही बचा है। यह

आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त करने के लिए सांसारिक मोह-माया के त्याग और अहंकार के समर्पण का प्रतिनिधित्व करता है।

इसलिए, जब हम भगवान शिव को राख लगाते हैं, तो हम सृजन और विनाश के दिव्य नृत्य का सम्मान करते हैं, और हम आध्यात्मिक विकास और जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं।

सावनLord Shiva Statue

शिवजी की आरती

ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अर्द्धांगी धारा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।


एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसानन गरूड़ासन
वृषवाहन साजे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।


दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।


अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।


श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।


ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
पर्वत सोहें पार्वतू, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
जया में गंग बहत है, गल मुण्ड माला।
शेषनाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे।।
ओम जय शिव ओंकारा।। ओम जय शिव ओंकारा।।

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